ब्रह्माजी ने अपने नितंब प्रदेश से असुरों को उत्पन्न किया जो अत्यन्त कामी थे। अत्यन्त कामी होने के कारण वे संभोग के लिए उनके निकट आ गये।
तात्पर्य
विषयी जीवन इस भौतिक संसार की आधारभूमि है। यहाँ पर भी यही दुहराया गया है कि असुर विषय-वासना के अत्यन्त प्रेमी होते हैं। जो विषय-वासना से जितना ही मुक्त होता जाता है, वह उतना ही देवत्व के स्तर की ओर अग्रसर होता है और जिसका काम- वासना के प्रति जितना झुकाव होता है, वह उतना ही आसुरी जीवन की अधोगति को प्राप्त होता है।
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