ततो हसन् स भगवानसुरैर्निरपत्रपै: ।
अन्वीयमानस्तरसा क्रुद्धो भीत: परापतत् ॥ २४ ॥
शब्दार्थ
तत:—तब; हसन्—हँसते हुए; स: भगवान्—पूज्य ब्रह्माजी; असुरै:—असुरों के द्वारा; निरपत्रपै:—निर्लज्ज; अन्वीयमान:—पीछा करते हुए; तरसा—तेजी से; क्रुद्ध:—नाराज; भीत:—भयभीत; परापतत्—भाग गया ।.
अनुवाद
पहले तो पूज्य ब्रह्माजी उनकी मूर्खता पर हँसे, किन्तु उन निर्लज्ज असुरों को अपना पीछा करते देखकर वे क्रुद्ध हुए और भयभीत होकर हड़बड़ी में भागने लगे।
तात्पर्य
विषयी असुरों को अपने पिता के प्रति भी आदरभाव नहीं रह जाता, अत: ब्रह्मा जैसे साधु पिता के लिए सबसे अच्छी नीति यही है कि ऐसे असुर-पुत्रों का परित्याग कर दे।
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