श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.20.26 
पाहि मां परमात्मंस्ते प्रेषणेनासृजं प्रजा: ।
ता इमा यभितुं पापा उपाक्रामन्ति मां प्रभो ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
पाहि—रक्षा कीजिये; माम्—मुझको; परम-आत्मन्—हे परमेश्वर; ते—तुम्हारी; प्रेषणेन—आज्ञा से; असृजम्—मैंने उत्पन्न किया; प्रजा:—समस्त जीव; ता: इमा:—वे ही; यभितुम्—संभोग की इच्छा से; पापा:—पापी जीव; उपाक्रामन्ति—पास आ रहे हैं; माम्—मेरे; प्रभो—हे भगवान् ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् के पास जाकर ब्रह्माजी ने उन्हें इस प्रकार सम्बोधित किया—हे भगवान्, इन पापी असुरों से मेरी रक्षा करें, जिन्हें आपकी आज्ञा से मैंने उत्पन्न किया था। ये विषय-वासना की भूख से क्रोधोन्माद में आकर मुझ पर आक्रमण करने आये हैं।
 
तात्पर्य
 इस घटना से ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न असुरों की सृष्टि में पुरुषों के मध्य समलिंगी तृषा उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में, एक पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष के लिए समलिंगी भूख आसुरी है और सामान्य जीवन में किसी भी बुद्धिमान मनुष्य के लिए उचित नहीं है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥