त्वम्—तुम; एक:—अकेले; किल—निस्सन्देह; लोकानाम्—मनुष्यों के; क्लिष्टानाम्—क्लेशों से ग्रस्त; क्लेश— कष्ट; नाशन:—नाश करने के लिए; त्वम् एक:—तुम्हीं अकेले; क्लेश-द:—क्लेश देने वाले; तेषाम्—उन पर; अनासन्न—जो शरण नहीं लेते; पदाम्—पैरों की; तव—तुम्हारे ।.
अनुवाद
हे भगवान्, केवल आप ही दुखियों के कष्ट दूर करने और आपके चरणों की शरण में न आने वालों को यातना देने में समर्थ हैं।
तात्पर्य
क्लेशदस्तेषामनासन्नपदां तव शब्द सूचित करते हैं कि भगवान् के दो काम हैं। प्रथम यह कि जो उनके चरणकमलों की शरण में आता है उसे सुरक्षा प्रदान करें और दूसरा यह कि जो आसुरी स्वभाव के हैं और भगवान् से वैर-भाव रखते हैं उन्हें कष्ट पहुँचाएं। माया का कार्य है अभक्तों को कष्ट पहुँचाना। यहाँ ब्रह्मा कहते हैं, “आप शरणागत जीवों के रक्षक हैं अत: मैं आपके चरणकमलों की शरण ग्रहण करता हूँ। कृपा करके इन असुरों से मेरी रक्षा करें।”
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.