वितर्कयन्त:—तर्क-वितर्क करते हुए; बहुधा—अनेक प्रकार से; ताम्—उस; सन्ध्याम्—संध्या वेला को; प्रमदा— तरुणी स्त्री; आकृतिम्—के रूप में; अभिसम्भाव्य—सम्मानपूर्वक; विश्रम्भात्—प्यार से; पर्यपृच्छन्—पूछी जाकर; कु-मेधस:—दुष्ट बुद्धि वाले ।.
अनुवाद
तरुणी स्त्री के रूप में प्रतीत होने वाली संध्या के विषय में अनेक प्रकार के तर्क- वितर्क करते हुए दुष्ट-बुद्धि असुरों ने उसका अत्यन्त आदर किया और उससे प्रेमपूर्वक इस प्रकार बोले।
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