हे सुन्दरी, जब तुम धरती से उछलती गेंद को अपने हाथों से बार-बार मारती हो तो तुम्हारे चरण-कमल एक स्थान पर नहीं रुके रहते। तुम्हारे पूर्ण विकसित स्तनों के भार से पीडि़त तुम्हारी कमर थक जाती है और स्वच्छ दृष्टि मन्द पड़ जाती है। कृपया अपने सुन्दर बालों को ठीक से गूँथ तो लो।
तात्पर्य
असुरों को उस सुन्दरी के प्रत्येक पग पर सुन्दर हाव-भाव दिख रहे थे। यहाँ पर वे गेंद खेलते समय उसके पूरी तरह उभरे उरोजों, बिखरे बालों तथा आगे-पीछे झुकने की गतियों की प्रशंसा करते हैं। वे पद-पद पर उसके स्त्रियोचित सौन्दर्य का आनंद लेते हैं और इस प्रकार आनन्द लेते हुए उनके मन कामवासना से उद्विग्न हो उठते हैं। जिस प्रकार रात्रि में अग्नि के चारों ओर पतंगे एकत्र होते और फिर मर जाते हैं उसी प्रकार से असुर सुन्दरी के कन्दुक सदृश स्तनों की हलचल के शिकार हो जाते हैं। सुन्दरी की बिखरी केश-राशि भी कामी असुरों के मन को आहत करती है।
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