प्रहस्य—हँस कर; भाव-गम्भीरम्—गम्भीर प्रयोजन से; जिघ्रन्त्या—समझकर; आत्मानम्—स्वयं को; आत्मना— अपने आप से; कान्त्या—अपनी कान्ति से; ससर्ज—उत्पन्न किया; भगवान्—पूज्य भगवान् ब्रह्मा; गन्धर्व—नैसर्गिक गायक; अप्सरसाम्—तथा स्वर्ग की नर्तकियाँ; गणान्—समूह ।.
अनुवाद
तब गम्भीर भावपूर्ण हँसी हँसते हुए पूज्य ब्रह्मा ने अपनी कान्ति से, जो अपने सौन्दर्य का मानो आप ही आस्वादन करती थी, गन्धर्वों व अप्सराओं के समूह को उत्पन्न किया।
तात्पर्य
स्वर्गलोक के गायक गंधर्व कहलाते हैं और नर्तकियाँ अप्सराएँ। असुरों द्वारा आक्रमण किये जाने पर ब्रह्मा ने पहले संध्या समय एक सुन्दर स्त्री का रूप उत्पन्न किया और फिर गन्धर्व तथा अप्सराएँ उत्पन्न कीं। जब इन्द्रिय-तृप्ति के लिए गायन तथा वादन का प्रयोग होता है, तो वह आसुरी होता है किन्तु वही गायन-वादन जब कीर्तन के रूप में भगवान् की स्तुति के लिए प्रयुक्त होता है, तो वह दिव्य होता है और उससे ऐसा जीवन उत्पन्न होता है, जो सर्वथा आत्मसुख के योग्य है।
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