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श्लोक 3.20.39  |
विससर्ज तनुं तां वैज्योत्स्नां कान्तिमतीं प्रियाम् ।
त एव चाददु: प्रीत्या विश्वावसुपुरोगमा: ॥ ३९ ॥ |
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शब्दार्थ |
विससर्ज—त्याग दिया; तनुम्—रूप को; ताम्—उस; वै—निस्सन्देह; ज्योत्स्नाम्—चाँदनी; कान्ति-मतीम्—चमकती हुई; प्रियाम्—प्रिया; ते—गन्धर्व; एव—निश्चय ही; च—तथा; आददु:—अपना लिया; प्रीत्या—प्रसन्नतापूर्वक; विश्वावसु-पुर:-गमा:—विश्वावसु जिनका अग्रणी था ।. |
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अनुवाद |
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तत्पश्चात् ब्रह्मा ने वह चाँदनी सा दीप्तिमान तथा सुन्दर रूप त्याग दिया और विश्वावसु तथा अन्य गन्धर्वों ने प्रसन्नतापूर्वक उसे अपना लिया। |
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