एक बार ब्रह्माजी अपने शरीर को पूरी तरह फैलाकर लेटे थे। वे अत्यधिक चिन्तित थे कि उनकी सृष्टि का कार्य आगे नहीं बढ़ रहा है, अत: उन्होंने रोष में आकर उस शरीर को भी त्याग दिया।
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