श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  3.20.50 
तेभ्य: सोऽसृजत्स्वीयं पुरं पुरुषमात्मवान् ।
तान् दृष्ट्वा ये पुरा सृष्टा: प्रशशंसु: प्रजापतिम् ॥ ५० ॥
 
शब्दार्थ
तेभ्य:—उनके लिए; स:—ब्रह्मा ने; असृजत्—प्रदान किया; स्वीयम्—निज; पुरम्—शरीर; पुरुषम्—मनुष्य का; आत्म-वान्—स्व-युक्त; तान्—उनको; दृष्ट्वा—देखकर; ये—जो; पुरा—इससे पूर्व; सृष्टा:—रचे गये (देव, गंधर्व आदि, जिनकी सृष्टि पहले हो चुकी थी); प्रशशंसु:—बड़ाई की; प्रजापतिम्—ब्रह्मा (उत्पन्न जीवों के स्वामी) की ।.
 
अनुवाद
 
 आत्मवान स्रष्टा ने उन्हें अपना मानवी रूप दे दिया। मनुओं को देखकर, उनसे पूर्व उत्पन्न देवता, गन्धर्व आदि ब्रह्माण्ड के स्वामी ब्रह्मा की स्तुति करने लगे।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥