एवमुग्रश्रवा: पृष्ट ऋषिभिर्नैमिषायनै: ।
भगवत्यर्पिताध्यात्मस्तानाह श्रूयतामिति ॥ ७ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; उग्रश्रवा:—सूत गोस्वामी; पृष्ट:—पूछे जाने पर; ऋषिभि:—ऋषियों द्वारा; नैमिष-अयनै:—जो नैमिष के जंगल (नैमिषारण्य) में एकत्र हुए थे; भगवति—भगवान् को; अर्पित—अर्पित; अध्यात्म:—अपना मन; तान्—उनसे; आह—कहा; श्रूयताम्—सुनो; इति—इस प्रकार ।.
अनुवाद
नैमिषारण्य के ऋषियों द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर रोमहर्षण के पुत्र सूत गोस्वामी ने, जिनका मन भगवान् की दिव्य लीलाओं में लीन था, कहा—अब जो मैं कहता हूँ, कृपया उसे सुनें।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥