विदुर ने कहा—हे पवित्र मुनि, आप हमारी समझ में न आने वाले विषयों को भी जानते हैं, अत: मुझे यह बताएँ कि जीवों के आदि जनक प्रजापतियों को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्मा ने जीवों की सृष्टि के लिए क्या किया?
तात्पर्य
यहाँ पर अव्यक्त-मार्ग-वित् शब्द अत्यन्त सार्थक है, जिसका अर्थ है, “जो हमारी कल्पना शक्ति के परे है उसे जानने वाला।” अपनी कल्पना शक्ति से परे की बातें जानने के लिए शिष्य-परम्परा की श्रेणी के किसी श्रेष्ठ अधिकारी से सीखना पड़ता है। केवल इतना भी जान पाना कि हमारा पिता कौन है हमारी कल्पना के परे है। उसके लिए माता अधिकारी है। इसी प्रकार हमें कल्पना से परे प्रत्येक वस्तु को वास्तविक ज्ञाता अर्थात् विशेषज्ञ (अधिकारी) से जानना चाहिए। प्रथम अव्यक्त-मार्ग-वित् अर्थात् विशेषज्ञ ब्रह्मा हैं और उस शिष्य-परम्परा में दूसरे नारद हैं। मैत्रेय ऋषि का उसी शिष्य-परम्परा से सम्बन्ध है, अत: वे भी अव्यक्त-मार्ग-वित् हैं। कोई भी व्यक्ति जो प्रामाणिक शिष्य-परम्परा से सम्बद्ध है अव्यक्त मार्गवित् है अर्थात् ऐसा महापुरुष है, जो सामान्य बुद्धि से परे सब कुछ जानता है।
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