हे भगवान्, आप अकेले ही ब्रह्माण्डों की सृष्टि करते हैं। हे श्रीभगवान्, इन ब्रह्माण्डों की सृष्टि करने की इच्छा से, आप उनकी सृष्टि करते, उन्हें पालते और फिर अपनी शक्तियों से उनका अन्त कर देते हैं। ये शक्तियाँ आपकी दूसरी शक्ति योगमाया के अधीन हैं, जिस प्रकार एक मकड़ी अपनी शक्ति से जाला बुनती है और पुन: उसे निगल जाती है।
तात्पर्य
इस श्लोक के दो शब्दों से निर्विशेषवादियों का सिद्धान्त कि प्रत्येक वस्तु ईश्वर है निरस्त हो जाता है। यहाँ पर कर्दम मुनि कहते हैं, “हे भगवान्! आप अकेले हैं, किन्तु आपकी शक्तियाँ विविध हैं।” मकड़ी का उदाहरण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मकड़ी व्यष्टि जीवात्मा है और यह अपनी शक्ति से जाला बुनती है और उस पर खेलती है और जब चाहती है जाले का अन्त करके खेल समाप्त कर देती है। जब मकड़ी की लार से जाला बुना जाता है, तो मकड़ी निर्गुण नहीं हो जाती। इसी प्रकार भौतिक या आध्यात्मिक शक्ति की सृष्टि या प्रादुर्भाव से कर्ता निर्गुण नहीं हो जाता। यह प्रार्थना बताती है कि भगवान् संवेदनशील है और भक्तों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं और उन्हें पूरा करते हैं। अत: वे सच्चिदानन्द विग्रह हैं।
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