मैं आपके चरण-कमलों में निरन्तर सादर नमस्कार करता हूँ, जिनकी शरण ग्रहण करना श्रेयस्कर है, क्योंकि आप अकिंचनों पर समस्त आशीर्वादों की वृष्टि करने वाले हैं। आपने इन भौतिक लोकों को अपनी ही शक्ति से विस्तार दिया है, जिससे समस्त जीवात्माएँ आपकी अनुभूति के द्वारा सकाम कर्मों से विरक्ति प्राप्त कर सकें।
तात्पर्य
प्रत्येक व्यक्ति जो भौतिक सुख, मुक्ति या भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति का अभिलाषी है, उसे चाहिए कि भगवान् को नमस्कार करे, क्योंकि भगवान् प्रत्येक मनुष्य को मनवांछित फल देने वाले हैं। भगवद्गीता में भगवान् ने दृढ़तापूर्वक कहा है—ये यथा मां प्रपद्यन्ते—जो कोई इस संसार में सफलतापूर्वक भोग करना चाहता है भगवान् उसे भोग का वर देते हैं, जो इस संसार के बन्धन से मुक्त होना चाहता है उसे वे मुक्ति प्रदान करते हैं और जो पूर्ण कृष्णभावनामृत में जुटे रहना चाहता है भगवान उसे भक्ति का वर प्रदान करते हैं। भौतिक सुख के लिए उन्होंने वेदों में अनेक यज्ञ करने की संस्तुति की है और उन आदेशों के लाभ से या तो उच्चतर लोकों में या किसी सम्पन्न परिवार में रहकर भौतिक आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। ये विधियाँ वेदों में उल्लिखित हैं और लोग इन्हीं से लाभ उठा सकते हैं। इस भौतिक संसार से उद्धार चाहने वाले लोग भी उसी प्रकार लाभ उठा सकते हैं।
जब तक कोई इस भौतिक संसार के सुख से ऊब नहीं जाता वह मुक्ति की कामना नहीं कर सकता। मुक्ति भौतिक सुख से ऊबने वाले के लिए है। अत: वेदान्त सूत्र का कथन है— अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा—जिन्होंने इस संसार में सुखी रहने की आशा छोड़ दी है वे ही परम सत्य की खोज के प्रति उन्मुख होते हैं। जो लोग परम सत्य को जानना चाहते हैं उनके लिए वेदान्त सूत्र तो उपलब्ध है और उसी प्रकार उसका भाष्य श्रीमद्भागवत भी है। चूँकि भगवद्गीता भी वेदान्त सूत्र ही है, अत: श्रीमद्भागवत, वेदान्त सूत्र अथवा भगवद्गीता को समझ कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वास्तविक ज्ञान हो जाने पर सिद्धान्तत: परमेश्वर से तदाकार हुआ जा सकता है और जब कोई ब्रह्म की सेवा या कृष्ण-भक्ति करने लगता है, तो वह न केवल मुक्त हो जाता है, वरन् आध्यात्मिक-जीवन में स्थित हो जाता है। इसी प्रकार जो भौतिक प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए भौतिक सुख के लिए अनेक साधन रहते हैं। भौतिक ज्ञान तथा भौतिक विज्ञान सभी उपलब्ध हैं और जो इनका भोग करना चाहते हैं भगवान् उन्हें वह भी प्रदान करते हैं। निष्कर्ष यह निकला कि किसी भी वरदान के लिए पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की पूजा करनी चाहिए। यहाँ काम-वर्षम् शब्द अत्यन्त सार्थक है, क्योंकि यह सूचित करता है कि जो कोई भी भगवान् के पास पहुँचता है वे उसकी आकांक्षाओं को पूरा करते हैं। किन्तु जो श्रीकृष्ण से प्रेम करने के साथ ही भौतिक सुख भी चाहता है, वह अत्यन्त दुविधा में रहता है। श्रीकृष्ण उसके प्रति अत्यन्त दयालु होने के कारण दिव्य प्रेमाभक्ति में अनुरक्त होने का उसे अवसर प्रदान करते हैं, जिससे वह क्रमश: व्यामोह को भूल जाता है।
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