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श्लोक 3.21.29  |
या त आत्मभृतं वीर्यं नवधा प्रसविष्यति ।
वीर्ये त्वदीये ऋषय आधास्यन्त्यञ्जसात्मन: ॥ २९ ॥ |
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शब्दार्थ |
या—वह; ते—तुम्हारे द्वारा; आत्म-भृतम्—उसमें बोये गये; वीर्यम्—बीज से; नव-धा—नौ कन्याएँ; प्रसविष्यति— जन्म देगी; वीर्ये त्वदीये—तुम्हारे द्वारा उत्पन्न कन्याओं में; ऋषय:—ऋषिगण; आधास्यन्ति—उत्पन्न करेंगे; अञ्जसा— कुल मिलाकर; आत्मन:—सन्तानें ।. |
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अनुवाद |
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वह तुम्हारा वीर्य धारण करके नौ पुत्रियाँ उत्पन्न करेगी और यथासमय इन कन्याओं से ऋषि सन्तानें उत्पन्न करेंगे। |
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