मेरी आज्ञा का अच्छी तरह से पालन करने के कारण स्वच्छ हृदय होकर तुम अपने सब कर्मों का फल मुझे अर्पित करके अन्त में मुझे ही प्राप्त करोगे।
तात्पर्य
तीर्थी-कृताशेष-क्रियार्थ: शब्द महत्त्वपूर्ण हैं। तीर्थ का अर्थ है, वह पवित्र स्थान जहाँ दान दिया जाता है। लोग तीर्थस्थल में जाते थे और दिल खोलकर दान देते थे। यह प्रथा अब भी चालू है। अत: भगवान् ने कहा, “अपने कर्मों तथा उनके फलों को पवित्र बनाने के लिए तुम प्रत्येक वस्तु मुझे अर्पित करोगे।” इसकी पुष्टि भगवद्गीता में भी की गई है—“तुम जो भी करो, जो भी खाओ, जो भी यज्ञ करो, उसका फल केवल मुझे अर्पित होना चाहिए।” अन्यत्र भगवद्गीता में भगवान् ने कहा है, “समस्त यज्ञों, तपों तथा मनुष्य या समाज के लिए जो कुछ भी किया जाता है उन सबका भोक्ता मैं ही हूँ।” उक्त समस्त कार्य, चाहे परिवार के कल्याण के लिए हो या समाज, देश अथवा मानवता के लिए, उन्हें कृष्ण-भावनामृत के लिए सम्पन्न किया जाना चाहिए। यही भगवान् का कर्दम मुनि को उपदेश है। महाराज युधिष्ठिर ने नारद मुनि का सत्कार करते हुए कहा—“आप जहाँ भी उपस्थित रहते हैं वह स्थान पवित्र हो जाता है, क्योंकि आपके हृदय में स्वयं भगवान् सदैव स्थित रहते हैं।” इसी प्रकार यदि हम भगवान् तथा उनके प्रतिनिधि के आदेशों पर कृष्णभावनामृत के लिए कर्म करते हैं, तो प्रत्येक वस्तु पवित्र हो जाती है। यह संकेत कर्दम मुनि को किया गया जिन्होंने इसके अनुसार कार्य किया जिससे उन्हें सर्वोत्तम पत्नी मिली और पुत्र भी, जैसाकि आगे बताया जाएगा।
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