सरस्वती नदी के बाढ़-जल से भरने वाले पवित्र बिन्दु सरोवर का सेवन ऋषियों का समूह करता था। इसका पवित्र जल न केवल कल्याणकारी था वरन् अमृत के समान मीठा भी था। यह बिन्दु सरोवर कहलाता था, क्योंकि यहीं पर, जब भगवान् शरणागत ऋषि पर दयार्द्र हो उठे थे, उनके नेत्रों से आँसुओं की बूँदें गिरी थीं।
तात्पर्य
कर्दम मुनि ने भगवान् की अहैतुकी कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से तपस्या की थी और जब भगवान् वहाँ पहुँचे तो वे इतने दयार्द्र हो उठे कि प्रसन्नता वश उनके नेत्रों से आँसू टपक पड़े जिनसे बिन्दु सरोवर बन गया। अत: बिन्दु सरोवर को बड़े-बड़े साधु तथा विद्वान पूजते हैं, क्योंकि परम सत्य के दर्शनशास्त्र के अनुसार भगवान् और उनके नेत्रों के आँसू अभिन्न हैं। जिस प्रकार भगवान् के पाँव के अँगूठे का पसीना पवित्र गंगा नदी बन गया था, उसी प्रकार भगवान् के दिव्य नेत्रों से गिरे आँसू बिन्दु-सरोवर बन गया। ये दोनों ही दिव्य हैं जिनकी महान् साधु तथा विद्वान पूजा करते हैं। यहाँ पर बिन्दु सरोवर के जल को शिवामृत जल कहा गया है। शिव का अर्थ होता है “चंगा करने वाला।” जो कोई भी बिन्दु सरोवर के जल को पीता है उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं; इसी प्रकार जो कोई भी गंगाजल में स्नान करता है उसके सारे भव-रोग जाते रहते हैं। ऐसे दावों को बड़े-बड़े विद्वानों तथा प्रामाणिक पुरुषों ने स्वीकार किया है और आज इस कलियुग में भी लोग ऐसा करते हैं।
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