इसके तटों पर हिरन, सूकर, साही, नीलगाय, हाथी, लंगूर, शेर, बन्दर, नेवला तथा कस्तूरी मृगों की बहुलता थी।
तात्पर्य
कस्तूरी मृग सभी स्थानों पर नहीं मिलता, वह केवल बिन्दु-सरोवर जैसे स्थानों में ही पाया जाता है। ये अपनी नाभि में निकलती कसूरी की गन्ध से सैदव उन्मत्त रहते हैं। गवय अर्थात् नीलगायों की पूँछ में बालों का गुच्छा होता है। इन बाल के गुच्छों को मन्दिरों में पूजा के लिए मूर्तियों पर पंखा झलने के काम में लाया जाता है। कभी-कभी गवय को चमरी भी कहा जाता है, वे अत्यन्त पवित्र मानी जाती हैं। आज भी भारत में अनेक बनजारे हैं, जो कस्तूरी तथा चमरी के बालों का व्यापार करते हैं। उच्च श्रेणी के हिन्दुओं में इनकी अत्यधिक माँग है और आज भी भारत के बड़े-बड़े शहरों तथा ग्रावों में यह व्यापार चलता है।
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