रुचिर्यो भगवान् ब्रह्मन्दक्षो वा ब्रह्मण: सुत: ।
यथा ससर्ज भूतानि लब्ध्वा भार्यां च मानवीम् ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
रुचि:—रुचि; य:—जो; भगवान्—पूज्य; ब्रह्मन्—हे साधु; दक्ष:—दक्ष; वा—तथा; ब्रह्मण:—भगवान् ब्रह्मा का; सुत:—पुत्र; यथा—जिस प्रकार; ससर्ज—उत्पन्न किया; भूतानि—सन्तान; लब्ध्वा—पा करके; भार्याम्—अपनी पत्नियों के रूप में; च—तथा; मानवीम्—स्वायम्भुव मनु की कन्याएँ ।.
अनुवाद
हे ऋषि, कृपा करके मुझे बताएँ कि ब्रह्मा के पुत्र दक्ष तथा रुचि ने स्वायंभुव मनु की अन्य दो कन्याओं को पत्नी रूप में प्राप्त करके किस प्रकार सन्तानें उत्पन्न कीं?
तात्पर्य
वे महापुरुष जिन्होंने सृष्टि के प्रारम्भ में संतान वृद्धि में योगदान किया प्रजापति कहलाते हैं। ब्रह्मा भी प्रजापति कहलाते हैं ऐसे ही उनके कतिपय परवर्ती पुत्र भी। स्वायंभुव मनु भी प्रजापति हैं तथा ऐसे ही ब्रह्मा का दूसरा पुत्र दक्ष भी। स्वायंभुव मनु के दो कन्याएँ थीं—आकूति तथा प्रसूति। प्रजापति रुचि ने आकूति के साथ और दक्ष ने प्रसूति के साथ ब्याह किया। इन युग्मों तथा इनकी सन्तानों ने समग्र ब्रह्माण्ड को बसाने के लिए अनेक सन्तानें उत्पन्न कीं। विदुर का प्रश्न था, “उन्होंने प्रारम्भ में किस प्रकार सन्ततियाँ उत्पन्न कीं?”
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.