तब सत्ययुग में कमल-नयन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने प्रसन्न होकर कर्दम मुनि को अपने दिव्य रूप का दर्शन कराया, जिसे वेदों के माध्यम से ही जाना जा सकता है।
तात्पर्य
यहाँ पर दो बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथम तो यह कि कर्दम मुनि ने सत्ययुग के प्रारम्भ में योगसिद्धि प्राप्त की जब मनुष्यों की आयु एक लाख वर्ष होती थी। कर्दम मुनि को सफलता मिलने के बाद भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने रूप का दर्शन दिया जो काल्पनिक न था। कभी-कभी निर्विशेषवादी सलाह देते हैं कि मनुष्य जिस रूप को चाहे अपने मन में धारण कर सकता है, किन्तु यहाँ यह स्पष्ट कहा गया है भगवान् ने कर्दम मुनि को जो रूप दिखलाया वह वैदिक साहित्य में वर्णित है। शाब्दं ब्रह्म का अर्थ है वैदिक साहित्य में भगवान् के रूपों का स्पष्ट उल्लेख है। कर्दम मुनि ने भगवान् के किसी काल्पनिक रूप की खोज नहीं की जैसाकि आजकल के धूर्त कहते हैं। उन्होंने भगवान् के नित्य, आनन्दमय तथा दिव्य रूप को साक्षात् देखा।
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