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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 21: मनु-कर्दम संवाद  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.21.8 
तावत्प्रसन्नो भगवान् पुष्कराक्ष: कृते युगे ।
दर्शयामास तं क्षत्त: शाब्दं ब्रह्म दधद्वपु: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
तावत्—तब; प्रसन्न:—प्रसन्न होकर; भगवान्—श्रीभगवान् ने; पुष्कर-अक्ष:—कमल के समान नेत्र वाले; कृते युगे—सत्ययुग में; दर्शयाम् आस—दिखलाया; तम्—कर्दम मुनि को; क्षत्त:—हे विदुर; शाब्दम्—जिसे वेदों के माध्यम से ही जाना जा सकता है; ब्रह्म—परम सत्य; दधत्—प्रकट करते हुए; वपु:—अपना दिव्य शरीर ।.
 
अनुवाद
 
 तब सत्ययुग में कमल-नयन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने प्रसन्न होकर कर्दम मुनि को अपने दिव्य रूप का दर्शन कराया, जिसे वेदों के माध्यम से ही जाना जा सकता है।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर दो बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथम तो यह कि कर्दम मुनि ने सत्ययुग के प्रारम्भ में योगसिद्धि प्राप्त की जब मनुष्यों की आयु एक लाख वर्ष होती थी। कर्दम मुनि को सफलता मिलने के बाद भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने रूप का दर्शन दिया जो काल्पनिक न था। कभी-कभी निर्विशेषवादी सलाह देते हैं कि मनुष्य जिस रूप को चाहे अपने मन में धारण कर सकता है, किन्तु यहाँ यह स्पष्ट कहा गया है भगवान् ने कर्दम मुनि को जो रूप दिखलाया वह वैदिक साहित्य में वर्णित है। शाब्दं ब्रह्म का अर्थ है वैदिक साहित्य में भगवान् के रूपों का स्पष्ट उल्लेख है। कर्दम मुनि ने भगवान् के किसी काल्पनिक रूप की खोज नहीं की जैसाकि आजकल के धूर्त कहते हैं। उन्होंने भगवान् के नित्य, आनन्दमय तथा दिव्य रूप को साक्षात् देखा।
 
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