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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 22: कर्दममुनि तथा देवहूति का परिणय  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.22.28 
तमायान्तमभिप्रेत्य ब्रह्मावर्तात्प्रजा: पतिम् ।
गीतसंस्तुतिवादित्रै: प्रत्युदीयु: प्रहर्षिता: ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; आयान्तम्—आया हुआ; अभिप्रेत्य—समझ कर; ब्रह्मावर्तात्—ब्रह्मावर्त से; प्रजा:—उसकी प्रजा; पतिम्—अपने स्वामी को; गीत-संस्तुति-वादित्रै:—गीत, स्तुति तथा वाद्यसंगीत से; प्रत्युदीयु:—स्वागत के लिए आगे आये; प्रहर्षिता:—अत्यधिक प्रसन्न ।.
 
अनुवाद
 
 राजा का आगमन जानकर उसकी प्रजा अपार प्रसन्नता से ब्रह्मावर्त से बाहर निकल आई और वापस आते हुए अपने राजा का गीतों, स्तुतियों तथा वाद्य संगीत से सम्मान किया।
 
तात्पर्य
 यह एक प्रथा है कि किसी राज्य की राजधानी के नागरिक यात्रा से लौटे अपने राजा की अगवानी करते हैं। कुरुक्षेत्र युद्ध के पश्चात् श्रीकृष्ण के द्वारका लौटने का ऐसा ही वर्णन मिलता है। उस अवसर पर सभी वर्ग के नागरिकों ने नगर के प्रवेशद्वार पर उनका स्वागत किया। प्राचीनकाल में राजधानियाँ प्राचीरों से घिरी होती थीं और प्रवेश के लिए विभिन्न द्वार होते थे। आज भी दिल्ली में अनेक प्राचीन द्वार हैं और कुछ अन्य प्राचीन नगरों में ऐसे द्वार हैं जहाँ नागरिक एकत्र होकर राजा का स्वागत करते थे। यहाँ पर भी ब्रह्मावर्त की राजधानी बर्हिष्मती के नागरिक सुन्दर-सुन्दर वस्त्र धारण करके सम्राट स्वायंभुव मनु का स्वागत अनेक प्रकार की सजावट करके तथा वाद्य यंत्रों द्वारा करने के लिए आये।
 
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