तव सन्दर्शनादेवच्छिन्ना मे सर्वसंशया: ।
यत्स्वयं भगवान् प्रीत्या धर्ममाह रिरक्षिषो: ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
तव—आपके; सन्दर्शनात्—दर्शन से; एव—केवल; छिन्ना:—दूर हो गये; मे—मेरे; सर्व-संशया:—सारे सन्देह; यत्—यहाँ तक कि; स्वयम्—स्वत:; भगवान्—आपने; प्रीत्या—प्रीतीपूर्वक; धर्मम्—कर्तव्य; आह—बतलाया; रिरक्षिषो:—अपनी प्रजा की रक्षा के लिए उत्सुक राजा का ।.
अनुवाद
अब आपके दर्शन मात्र से मेरे सारे सन्देह दूर हो चुके हैं, क्योंकि आपने कृपापूर्वक अपनी प्रजा की रक्षा के लिए उत्सुक राजा के कर्तव्य की सुस्पष्ट व्याख्या की है।
तात्पर्य
मनु ने यहाँ परम साधु पुरुष के दर्शन करने के फल का वर्णन किया है। भगवान् चैतन्य का कथन है कि मनुष्य को चाहिए कि सदैव साधु पुरुषों की संगति करे, क्योंकि एक क्षण की भी सुसंगति से सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है। यदि किसी प्रकार से साधु पुरुष से भेंट हो जावे और उसकी कृपा प्राप्त हो ले तो मनुष्य-जीवन का सारा उद्देश्य पूर्ण हो जाता है। मनु के इस कथन का हमारा व्यक्तिगत अनुभव वास्तविक प्रमाण है। एक बार हमें विष्णुपाद श्री श्रीमद् भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी महाराज के दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ और उन महानुभाव ने पहली भेंट में ही हमें पाश्चात्य देशों में अपने सन्देश का प्रचार करने के लिए निवेदन किया। इसके लिए कोई तैयारी न थी, किन्तु चूँकि उनकी इच्छा थी, उनकी कृपा से उनके आदेश के पालन में हम लगे हुए हैं। इससे हमें दिव्य कार्य मिला और उन्होंने हमें भौतिक वृत्तियों के कार्य-व्यापारों से उबार लिया। अत: यह सच है कि यदि ऐसे साधु पुरुष से भेंट हो जाय जो दिव्य कार्यों में ही अनुरक्त हों और यदि उनकी कृपा हो जाय, तो मनुष्य के जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है। जो हजारों जीवनों में भी प्राप्त नहीं हो पाता वह साधु पुरुष की एक क्षण की संगति से प्राप्त हो जाता है। अत: वैदिक साहित्य में यह आदेश है कि सदैव साधु पुरुष की संगति करनी चाहिए और सामान्य मनुष्य से अपने को अलग ही रखना चाहिए, क्योंकि साधु पुरुष के एक शब्द से ही भौतिक बन्धन से छुटकारा मिल सकता है। साधु पुरुष अपनी अध्यात्मिक उन्नति के कारण शक्तिसम्पन्न होता है और वह बद्धजीव को तुरन्त मुक्ति दिला सकता है। यहाँ पर मनु स्वीकार करते हैं कि कर्दम मुनि द्वारा कृपापूर्वक विभिन्न जीवों के कर्तव्यों का वर्णन करने के कारण उनके समस्त संशय दूर हो चुके हैं।
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