मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; पितृभ्याम्—माता-पिता के द्वारा; प्रस्थिते—प्रस्थान करने पर; साध्वी—पतिव्रता; पतिम्—अपने पति की; इङ्गित-कोविदा—मनोभावों को जानने वाली; नित्यम्—निरन्तर; पर्यचरत्—सेवा की; प्रीत्या—प्रेमपूर्वक; भवानी—देवी पार्वती; इव—समान; भवम्—शिवजी की; प्रभुम्—अपने स्वामी ।.
अनुवाद
मैत्रेय ने कहा—अपने माता-पिता के चले जाने पर अपने पति की इच्छाओं को समझनेवाली पतिव्रता देवहूति अपने पति की प्रतिदिन प्रेमपूर्वक सेवा करने लगी जिस प्रकार भवानी अपने पति शंकर जी की करती हैं।
तात्पर्य
भवानी का विशेष रूप से दिया गया उदाहरण महत्त्वपूर्ण है। भवानी का अर्थ है भव अर्थात् शिवजी की पत्नी। हिमालयराज की कन्या भवानी अथवा पार्वती ने शिवजी को अपना पति चुना जो भिक्षुक की तरह प्रतीत होते हैं। राजकुमारी होते हुए भी उन शिवजी को पाने के लिए उन्होंने अनेक कष्ट सहे, जिनके पास घर तक न था और जो एक वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में अपना सारा समय बिताते थे। यद्यपि भवानी एक बहुत बड़े राजा की कन्या थीं, किन्तु वे भिक्षुणी के समान शिवजी की सेवा किया करती थीं। इसी प्रकार देवहूति सम्राट स्वायंभुव मनु की कन्या थी तो भी उसने कर्दममुनि को अपने पति के रूप में वरण किया। वह उनकी अत्यन्त प्रेमपूर्वक सेवा करती और उन्हें प्रसन्न करना जानती थी। अत: उसे यहाँ पर साध्वी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है, ‘पतिपरायणा पत्नी या पतिव्रता स्त्री”। यह दुर्लभ उदाहरण वैदिक सभ्यता का आदर्श है। प्रत्येक स्त्री को देवहूति या भवानी के सदृश श्रेष्ठ तथा पतिव्रता होना चाहिए। आज भी हिन्दू समाज में अविवाहित लड़कियों को शंकर जी की पूजा करने के लिए कहा जाता है, जिससे उन्हें उनके समान पति मिले। शिव जी ऐश्वर्य या इन्द्रियतृप्ति की दृष्टि से नहीं वरन् भक्तों में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण आदर्श पति हैं। वैष्णवानां यथा शुम्भ:—शुम्भ या शिवजी आदर्श वैष्णव हैं। वे भगवान् राम का निरन्तर ध्यान करते हैं और हरे राम, हरे राम, हरे हरे, मन्त्र का जप करते रहते हैं। शिवजी का एक वैष्णव-सम्प्रदाय है, जो विष्णुस्वामी सम्प्रदाय कहलाता है। अविवाहित कन्याएँ शिवजी की पूजा इसीलिए करती हैं जिससे उनके समान ही वैष्णव पति प्राप्त हो। लड़कियों को कभी भी धनी या ऐश्वर्यवान पति चुनने की शिक्षा नहीं दी जाती, किन्तु यदि लडक़ी इतनी भाग्यवान होती है कि उसे शिवजी के समान उत्तम भक्त पति प्राप्त हो तो उसका जीवन सफल हो जाता है। पत्नी अपने पति पर आश्रित होती है और यदि पति वैष्णव हुआ तो वह अपने पति की भक्ति में हिस्सा बँटाती है, क्योंकि वह उसकी सेवा करती है। पति तथा पत्नी के बीच इस प्रकार सेवा तथा प्रेम का आदान-प्रदान गृहस्थ जीवन के लिए आदर्श है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.