हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.23.10 
देवहूतिरुवाच
राद्धं बत द्विजवृषैतदमोघयोग-
मायाधिपे त्वयि विभो तदवैमि भर्त: ।
यस्तेऽभ्यधायि समय: सकृदङ्गसङ्गो
भूयाद्गरीयसि गुण: प्रसव: सतीनाम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
देवहूति: उवाच—देवहूति ने कहा; राद्धम्—प्राप्त हुआ; बत—निस्सन्देह; द्विज-वृष—हे ब्राह्मणश्रेष्ठ; एतत्—यह; अमोघ—अचूक; योग-माया—योगशक्ति के; अधिपे—स्वामी; त्वयि—तुम में; विभो—हे महान्; तत्—वह; अवैमि—मैं जानती हूँ; भर्त:—हे पति; य:—जो; ते—तुम्हारे द्वारा; अभ्यधायि—दिया गया; समय:—वचन, प्रतिज्ञा; सकृत्—एक बार; अङ्ग-सङ्ग:—शारीरिक संयोग; भूयात्—होवे; गरीयसि—जब अत्यन्त यशस्वी; गुण:—सद्गुण; प्रसव:—सन्तान; सतीनाम्—पतिव्रता स्त्रियों का ।.
 
अनुवाद
 
 श्री देवहूति ने कहा—हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, मेरे प्रिय पति, मैं जानती हूँ कि आपने सिद्धि प्राप्त कर ली है और समस्त अचूक योगशक्ति के स्वामी हैं, क्योंकि आप दिव्य प्रकृति योगमाया के संरक्षण में हैं। किन्तु आपने एक बार वचन दिया था कि अब हमारा शारीरिक संसर्ग होना चाहिए, क्योंकि तेजस्वी पति वाली साध्वी पत्नी के लिए सन्तान बहुत बड़ा गुण है।
 
तात्पर्य
 देवहूति ने अपनी प्रसन्नता बत शब्द द्वारा व्यक्त की, क्योंकि वह जानती थी कि उसके पति अति उच्च दिव्य पद पर योगमाया की शरण में थे। जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है कि महात्मा भौतिक शक्ति के वश में नहीं रहते। परमेश्वर की दो शक्तियाँ हैं—भौतिक तथा आत्मिक। जीवात्माएँ तटस्था शक्ति हैं। तटस्था शक्ति के अन्तर्गत मनुष्य भौतिक शक्ति या फिर आत्मिक शक्ति (योगमाया) के वश में होते हैं। कर्दम मुनि महात्मा थे, अत: वे योगमाया के वश में थे जिसका अर्थ है कि वे प्रत्यक्षत: परमेश्वर से सम्बन्धित थे। इसका लक्षण है कृष्णभावनामृत या निरन्तर भक्ति में लगे रहना। यह देवहूति को ज्ञात था, तो भी वह मुनि के शारीरिक संयोग (संभोग) से पुत्र-प्राप्ति चाहती थी। अत: उसने अपने माता-पिता को दिये गये वचन की याद दिलाई, “मैं देवहूति के गर्भधारण काल तक रहूँगा।” उसने याद दिलाई कि महापुरुष से सन्तान-लाभ करना साध्वी स्त्री के लिए अत्यन्त गौरवास्पद है। वह गर्भधारण करना चाहती थी, अत: उसके लिए विनती की। स्त्री शब्द का अर्थ है “विस्तार।” पति तथा पत्नी के कायिक संयोग से उनके गुणों का विस्तार होता है; अच्छे माता-पिता से उत्पन्न संतानें उनके व्यक्तिगत गुणों के ही विस्तार होती हैं। कर्दम मुनि तथा देवहूति दोनों को आत्मिक प्रकाश प्राप्त था, अत: देवहूति शुरू से ही चाह रही थी कि पहले वह गर्भ धारण करे तब उसे भगवत्कृपा तथा भगवत्प्रेम प्राप्त हो। स्त्री की सबसे बड़ी अभिलाषा यही होती है कि उसे पति के ही समान योग्य पुत्र की प्राप्ति हो। चूँकि उसे पति रूप में कर्दम मुनि प्राप्त थे, अत: वह संभोग द्वारा पुत्र के लिए इच्छुक थी।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥