तत्रेतिकृत्यमुपशिक्ष यथोपदेशं
येनैष मे कर्शितोऽतिरिरंसयात्मा ।
सिद्ध्येत ते कृतमनोभवधर्षिताया
दीनस्तदीश भवनं सदृशं विचक्ष्व ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
तत्र—उसमें; इति-कृत्यम्—जो करणीय था; उपशिक्ष—सम्पन्न करो; यथा—के अनुसार; उपदेशम्—शास्त्रों के उपदेश; येन—जिससे; एष:—यह; मे—मेरा; कर्शित:—क्षीण; अतिरिरं-सया—तीव्र कामेच्छा के तुष्ट न होने से; आत्मा—शरीर; सिद्ध्येत—उपयुक्त बन सकता है; ते—तुम्हारे लिए; कृत—उत्तेजित; मन:-भव—कामेच्छा से; धर्षिताया:—पीडि़त; दीन:—दीन; तत्—अत:; ईश—हे भगवान्; भवनम्—घर; सदृशम्—उपयुक्त; विचक्ष्व—के विषय में सोचो ।.
अनुवाद
देवहूति ने आगे कहा—हे प्रभु, मैं कामवेदना से पीडि़त हो रही हूँ। अत: आप शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यवस्था की जानी हो, करें जिससे कामेच्छा सन्तुष्ट न हो पाने से यह मेरा दुर्बल शरीर आपके योग्य हो जाय। हाँ, स्वामी, इस कार्य के लिए उपयुक्त घर के विषय में भी विचार करें।
तात्पर्य
वैदिक साहित्य केवल शिक्षाओं से ही पूर्ण नहीं है, अपितु सिद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य से भौतिक अस्तित्व के लिए करणीय के विषय में भी सहायक है। अत: देवहूति ने अपने पति से पूछा कि वैदिक शिक्षाओं के अनुसार विषयी जीवन के लिए वह किस प्रकार अपने को तैयार करे। विषयी जीवन का मुख्य उद्देश्य अच्छी सन्तान उत्पन्न करना है। अच्छी सन्तान उत्पन्न करने की परिस्थितियों का वर्णन कामशास्त्र में प्राप्त है। शास्त्रों में जिस-जिस वस्तु की आवश्यकता होती है, सब कुछ वर्णित है—कैसा घर हो, कैसी सजावट हो, पत्नी कैसा वस्त्र धारण करे, किस प्रकार उबटन, सुगंधि लगाए तथा अन्य हाव-भाव बनाए। ऐसा करने से पति उसकी सुन्दरता से आकृष्ट होगा और उपयुक्त मानसिक स्थिति तैयार हो सकेगी। तब संभोग-काल की यह मानसिक स्थिति पत्नी के गर्भ में स्थानान्तरित हो सकेगी और उस गर्भधारण से अच्छी सन्तान उत्पन्न हो सकती है। यहाँ पर देवहूति के शारीरिक वैशिष्ट्य का विशेष उल्लेख है। वह अत्यन्त कृशकाय हो गई थी, अत: उसे भय था कि हो सकता है, वह कर्दम को आकर्षक न लगे। वह जानना चाहती थी कि पति को आकर्षित करने के लिए शरीर को किस तरह सुधारे। जब संभोग काल में पति आकृष्ट होता है, तो पुत्र उत्पन्न हो सकता है, किन्तु जब पति पर पत्नी आकृष्ट होती है, तो कन्या उत्पन्न हो सकती है। इसका उल्लेख आयुर्वेद में है। जब स्त्री की कामेच्छा प्रबल होती है, तो कन्या के उत्पन्न होने की और जब पुरुष की कामेच्छा प्रबल हो तो पुत्र उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। देवहूति काम-शास्त्र में वर्णित व्यवस्था के अनुसार अपने पति की कामेच्छा को प्रबल बनाना चाह रही थी। वह ऐसी ही शिक्षा चाह रही थी। साथ ही उसने विनय की कि एक उपयुक्त घर की भी व्यवस्था हो, क्योंकि जिस कुटी में कर्दम मुनि रह रहे थे वह अत्यन्त सादी और सत्त्वगुण से युक्त थी जिसमें कामेच्छा के उत्पन्न होने की सम्भावना कम थी।
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