मैत्रेय ने आगे कहा—हे विदुर, अपनी प्रिया की इच्छा को पूरा करने के लिए कर्दम मुनि ने अपनी योगशक्ति का प्रयोग किया और तुरन्त ही एक हवाई महल (विमान) उत्पन्न कर दिया जो उनकी इच्छानुसार यात्रा कर सकता था।
तात्पर्य
यहाँ पर योगम् आस्थित: शब्द महत्त्वपूर्ण है। कर्दम मुनि योग में पूर्णतया सिद्ध थे। योगाभ्यास के फलस्वरूप आठ प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं—योगी लघुतम से भी लघु, गुरुतम से भी गुरु एवं अत्यन्त हल्का हो सकता है। वह इच्छानुसार जो भी चाहे प्राप्त कर सकता है, चाहे तो लोक की सृष्टि कर दे, किसी पर भी अपना प्रभाव डाल दे इत्यादि। इस प्रकार योगसिद्धि प्राप्त की जाती है और इसी के बाद आत्म-जीवन की सिद्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार अपनी इच्छानुसार अपनी प्राणप्रिया की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए वायु में प्रासाद खड़ा कर देना कर्दम मुनि के लिए कोई आश्चर्य की बात न थी। अत: उन्होंने तुरन्त ही प्रासाद (महल) उत्पन्न कर दिया, जिसका वर्णन अगले श्लोकों में हुआ है।
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