यह सभी प्रकार के रत्नों से जटित, बहुमूल्य मणियों के ख भों से सुशोभित तथा इच्छित फल प्रदान करने वाली विस्मयजनक संरचना (महल) थी। यह सभी प्रकार के साज-सामान तथा सम्पदा से सुसज्जित था, जो दिन-प्रति-दिन बढऩे वाले थे।
तात्पर्य
कर्दम मुनि द्वारा सृजित प्रासाद “हवाई किला” कहा जा सकता है, किन्तु उन्होंने अपनी योगशक्ति से सचमुच वायु में बहुत बड़ा प्रासाद खड़ा कर दिया था। हम लोगों की कल्पना में हवाई किला असम्भव है, किन्तु यदि हम ठीक से विचार करें तो ऐसा असम्भव नहीं है। यदि श्रीभगवान् अनेक लोकों की सृष्टि कर सकते हैं, जो लाख-लाख हवाई किलों का वहन करते रहते हैं, तो क्या कर्दम जैसे सिद्ध योगी के लिए हवा में एक किला बनाना कठिन है? इस किले को सर्वकामदुघम् अर्थात् “इच्छित वस्तु को देने वाला” कहा गया है। यह मणियों से पूर्ण था। यहाँ तक कि इसमें ख भे भी मोती तथा अन्य बहुमूल्य पत्थरों से बने थे। ये अमूल्य मणि तथा रत्न कभी क्षय होने वाले न थे, वरन् नित्यप्रति इनकी कान्ति बढऩे वाली थी। हमने इस पृथ्वी पर भी ऐसे प्रासादों के बारे में सुना है। भगवान् श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ पत्नियों के लिए जो प्रासाद बनाये थे वे मणियों से जटित थे जिससे रात्रि में प्रकाश की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी।
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