हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.23.17 
तत्र तत्र विनिक्षिप्तनानाशिल्पोपशोभितम् ।
महामरकतस्थल्या जुष्टं विद्रुमवेदिभि: ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
तत्र तत्र—जहाँ तहाँ; विनिक्षिप्त—रखे हुए; नाना—विविध; शिल्प—कला-कृतियों से; उपशोभितम्—अत्यधिक सुन्दर; महा-मरकत—विशाल मरकत (पन्ना) के; स्थल्या—फर्श से; जुष्टम्—सुसज्जित; विद्रुम—मूँगे के; वेदिभि:—उठे हुए (ऊँचे) चबूतरों से ।.
 
अनुवाद
 
 दीवालों में जहाँ तहाँ कलापूर्ण संरचना होने से उनकी सुन्दरता बढ़ गई थी। उसकी फर्श मरकत मणि की थी और चबूतरे मूँगे के बने थे।
 
तात्पर्य
 आजकल के मनुष्य को स्थापत्यकला पर गर्व है फिर भी फर्शें सामान्यत: रंगीन सीमेंट से बनी रहती हैं। किन्तु कर्दममुनि ने योगशक्ति से जिस प्रासाद का निर्माण किया था उसकी फर्श पन्ने की थी और चबूतरे मूँगे के थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥