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श्लोक 3.23.25  |
अङ्गं च मलपङ्केन संछन्नं शबलस्तनम् ।
आविवेश सरस्वत्या: सर: शिवजलाशयम् ॥ २५ ॥ |
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शब्दार्थ |
अङ्गम्—शरीर; च—तथा; मल-पङ्केन—धूल से; सञ्छन्नम्—ढकी; शबल—विवर्ण, कान्तिहीन; स्तनम्—वक्षस्थल; आविवेश—प्रवेश किया; सरस्वत्या:—सरस्वती नदी के; सर:—सरोवर झील; शिव—पवित्र; जल—जल; आशयम्—युक्त ।. |
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अनुवाद |
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उसके शरीर पर धूल की मोटी पर्त चढ़ी थी और उसके स्तन कान्तिहीन हो गये थे। किन्तु उसने सरस्वती नदी के पवित्र जल से भरे सरोवर में डुबकी लगाई। |
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