श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.23.25 
अङ्गं च मलपङ्केन संछन्नं शबलस्तनम् ।
आविवेश सरस्वत्या: सर: शिवजलाशयम् ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
अङ्गम्—शरीर; च—तथा; मल-पङ्केन—धूल से; सञ्छन्नम्—ढकी; शबल—विवर्ण, कान्तिहीन; स्तनम्—वक्षस्थल; आविवेश—प्रवेश किया; सरस्वत्या:—सरस्वती नदी के; सर:—सरोवर झील; शिव—पवित्र; जल—जल; आशयम्—युक्त ।.
 
अनुवाद
 
 उसके शरीर पर धूल की मोटी पर्त चढ़ी थी और उसके स्तन कान्तिहीन हो गये थे। किन्तु उसने सरस्वती नदी के पवित्र जल से भरे सरोवर में डुबकी लगाई।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥