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श्लोक 3.23.26  |
सान्त:सरसि वेश्मस्था: शतानि दश कन्यका: ।
सर्वा: किशोरवयसो ददर्शोत्पलगन्धय: ॥ २६ ॥ |
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शब्दार्थ |
सा—उसने; अन्त:—भीतर; सरसि—सरोवर में; वेश्म-स्था:—घर में स्थित; शतानि दश—एक हजार; कन्यका:— कन्याएँ; सर्वा:—समस्त; किशोर-वयस:—किशोर अवस्था की; ददर्श—देखा; उत्पल—कमलों के समान; गन्धय:—सुगन्धित ।. |
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अनुवाद |
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उसने सरोवर के भीतर एक घर में एक हजार कन्याएँ देखीं जो सब की सब अपनी किशोरावस्था में थीं और कमलों के समान सुगन्धित थीं। |
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