श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.23.27 
तां दृष्ट्वा सहसोत्थाय प्रोचु: प्राञ्जलय: स्त्रिय: ।
वयं कर्मकरीस्तुभ्यं शाधि न: करवाम किम् ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
ताम्—उसको; दृष्ट्वा—देखकर; सहसा—एकाएक; उत्थाय—उठकर; प्रोचु:—उन्होंने कहा; प्राञ्जलय:—हाथ जोड़े; स्त्रिय:—स्त्रियाँ; वयम्—हम; कर्म-करी:—दासियाँ; तुभ्यम्—तुम्हारे लिए; शाधि—कृपा करके कहो; न:—हमको; करवाम—हम कर सकती हैं; किम्—क्या ।.
 
अनुवाद
 
 उसे देखकर वे तरुणियाँ सहसा उठ खड़ी हुईं और हाथ जोडक़र कहा, “हम आपकी दासी हैं। कृपा करके बताएँ कि हम आपके लिए क्या करें?”
 
तात्पर्य
 जब उस बड़े प्रासाद में मैले वस्त्र पहने देवहूति सोच रही थी कि वह क्या करे तो कर्दम मुनि ने अपनी योगशक्ति से एक हजार दासियाँ सेवा करने के लिए उत्पन्न कर दीं। वे जल के भीतर देवहूति के समक्ष प्रकट हुईं और दासियों के रूप में आज्ञा के लिए प्रतीक्षा करने लगीं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥