श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.23.31 
स्‍नातं कृतशिर:स्‍नानं सर्वाभरणभूषितम् ।
निष्कग्रीवं वलयिनं कूजत्काञ्चननूपुरम् ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
स्नातम्—स्नान किये; कृत-शिर:—सिर सहित; स्नानम्—नहाते हुए; सर्व—सर्वत्र; आभरण—आभूषणों से; भूषितम्—अलंकृत; निष्क—लटकन से युक्त सोने का गले का हार; ग्रीवम्—गर्दन में; वलयिनम्—चूडिय़ों से; कूजत्—ध्वनि करते; काञ्चन—सोने के बने; नूपुरम्—पायल ।.
 
अनुवाद
 
 सिर सहित उसका सारा शरीर नहलाया गया और उसके अंग-प्रत्यंग को आभूषणों से सजाया गया। उसने लटकन से युक्त हार (हार-हुमेल) पहना था। उसकी कलाइयों में चूडिय़ाँ थीं और उसकी एडिय़ों में सोने के खनकते पायल थे।
 
तात्पर्य
 यहाँ कृत-शिर:-स्नानम् शब्द आया है। स्मृति शास्त्र में नित्यकर्मों में जो निर्देश दिये गये हैं उनमें स्त्रियों को प्रतिदिन गर्दन तक स्नान करने की अनुमति है। प्रतिदिन सिर के बालों को धोने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि बाल गीले रहने से ठंड पकड़ सकती है। अत: सामान्य रूप से स्त्रियों को गले तक स्नान करने का विधान है और कुछ विशेष अवसरों पर ही वे पूर्ण स्नान करती हैं। इस अवसर पर देवहूति ने पूर्ण स्नान किया और अपने केशों को ठीक से धोया। जब स्त्री सामान्य स्नान करती है, तो उसे मल-स्नान कहते हैं, किन्तु जब वह सिर समेत पूर्ण स्नान करती है, तो उसे शिर-स्नान कहते हैं। ऐसे अवसर पर सिर में लगाने के लिए काफी तेल लगता है। स्मृतिशास्त्र के टीकाकारों का यही आदेश है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥