श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  3.23.33 
सुदता सुभ्रुवा श्लक्ष्णस्‍निग्धापाङ्गेन चक्षुषा ।
पद्मकोशस्पृधा नीलैरलकैश्च लसन्मुखम् ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
सुदता—सुन्दर दाँतों वाली; सु-भ्रुवा—मनोहर भौहों वाली; श्लक्ष्ण—सुन्दर; स्निग्ध—गीली; अपाङ्गेन—तिरछी चितवन से; चक्षुषा—आँखों से; पद्म-कोश—कमल की कलियाँ; स्पृधा—परास्त करने वाली; नीलै:—नीली-नीली; अलकै:—घुँघराले बाल से; च—तथा; लसत्—चमकती हुई; मुखम्—मुख ।.
 
अनुवाद
 
 उसका मुखमण्डल सुन्दर दाँतों तथा मनोहर भौहों से चमक रहा था। उसके नेत्र सुन्दर स्निग्ध कोरों से स्पष्ट दिखाई पडऩे के कारण कमल कली की शोभा को मात करते थे। उसका मुख काले घुँघराले बालों से घिरा हुआ था।
 
तात्पर्य
 वैदिक संस्कृति के अनुसार श्वेत दाँतों को अत्यधिक पसन्द किया जाता है। देवहूति के श्वेत दाँतों से उसके मुख की सुन्दरता बढ़ गई और वह कमल पुष्प के समान दिखने लगा। जब मुख अत्यन्त आकर्षक लगता है, तो नेत्रों की तुलना कमलदलों से और मुख की उपमा कमल पुष्प से दी जाती है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥