भर्तु:—अपने पति की; पुरस्तात्—उपस्थिति में, समक्ष; आत्मानम्—स्वयं को; स्त्री-सहस्र—एक हजार दासियों से; वृतम्—घिरी; तदा—तब; निशाम्य—देखकर; तत्—उसका; योग-गतिम्—योगशक्ति; संशयम् प्रत्यपद्यत—वह चकित हुई ।.
अनुवाद
अपने पति की उपस्थिति में अपने चारों ओर एक हजार दासियाँ और पति की योगशक्ति देखकर वह अत्यन्त चकित थी।
तात्पर्य
देवहूति ने प्रत्येक वस्तु को चमत्कारिक ढंग से होते देखा, किन्तु जब उसे पति के समक्ष लाया गया तो उसकी समझ में आया कि यह सब उनकी योगशक्ति से हुआ। वह समझ गई कि कर्दम मुनि जैसे योगी के लिए कुछ भी करना असम्भव नहीं है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.