श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 23: देवहूति का शोक  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  3.23.4-5 
स वै देवर्षिवर्यस्तां मानवीं समनुव्रताम् ।
दैवाद्गरीयस: पत्युराशासानां महाशिष: ॥ ४ ॥
कालेन भूयसा क्षामां कर्शितां व्रतचर्यया ।
प्रेमगद्गदया वाचा पीडित: कृपयाब्रवीत् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह (कर्दम); वै—निश्चय ही; देव-ऋषि—दैवी साधुओं में; वर्य:—सर्वश्रेष्ठ; ताम्—उस; मानवीम्—मनु की पुत्री को; समनुव्रताम्—पूर्णत: अनुरक्त; दैवात्—विधाता की अपेक्षा; गरीयस:—महान्; पत्यु:—अपने पति से; आशासानाम्—आशावान्; महा-आशिष:—महान् आशीर्वाद; कालेन भूयसा—दीर्घकाल तक; क्षामाम्—दुर्बल; कर्शिताम्—क्षीण; व्रत-चर्यया—धार्मिक चर्या से; प्रेम—प्रेम से; गद्गदया—विह्वल, रुद्ध; वाचा—वाणी से; पीडित:—विजित; कृपया—दया से; अब्रवीत्—कहा ।.
 
अनुवाद
 
 पतिपरायणा मनु की पुत्री अपने पति को विधाता से भी बड़ा मानती थी। इस प्रकार वह उनसे बड़ी-बड़ी आशाएँ किये रहती थी। दीर्घकाल तक सेवा करते रहने से धार्मिक व्रतों को रखने के कारण वह अत्यन्त क्षीण हो गई। उसकी दशा देखकर देवर्षिश्रेष्ठ कर्दम को उस पर दया आ गई और वे अत्यन्त प्रेम से गद्गद वाणी में बोले।
 
तात्पर्य
 पत्नी के पति की ही कोटि की होने की अपेक्षा की जाती है। उसे पति के सिद्धान्तों के पालन के लिए उद्यत रहना चाहिए तभी जीवन सुखी रह सकता है। यदि पति भक्त हुआ और पत्नी भौतिकवादी, तो घर में शान्ति नहीं रह सकती। पत्नी को पति की रुचि देखकर तदनुरूप आचरण करना चाहिए। महाभारत से हमें पता चलता है कि गांधारी को ज्ञात हो गया कि उसका भावी पति धृतराष्ट्र अन्धा है, तो वह स्वयं अंधेपन का अभ्यास करने लगी। इस तरह उसने आँखें बन्द कर लीं और अंधी स्त्री की भाँति व्यवहार करने लगी अन्यथा उसे अपनी आँखों का गर्व होता और उसका पति उसे निकृष्ट लगता। समनुव्रत शब्द सूचित करता है कि यह पत्नी का कर्तव्य है कि वह जिस परिस्थिति में उसका पति हो उसके अनुसार अपने को ढाले। निस्सन्देह, यदि पति कर्दम के समान महान् हुआ तो उसके अनुगमन से अच्छा फल निकलता है। किन्तु यदि पति कर्दम के समान महान् भक्त न हो तो भी पत्नी का यह कर्तव्य है कि वह अपने पति की रुचि के अनुसार ढले। इससे विवाहित जीवन सुखमय बन जाता है। यहाँ इसका भी वर्णन हुआ है कि साध्वी स्त्री का कठोर व्रत साधने से राजकुमारी देवहूति अत्यन्त दुबली हो गई थी जिससे उसके पति को दया आ गई। उन्हें पता था कि वह एक सम्राट की पुत्री हो कर भी सामान्य स्त्री की भाँति उनकी सेवा में लगी है। ऐसा करने से उसका स्वास्थ्य दुर्बल हो गया, फलत: मुनि दयार्द्र हो उठे और उससे इस प्रकार बोले।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥