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श्लोक  |
मैत्रेय उवाच
निर्वेदवादिनीमेवं मनोर्दुहितरं मुनि: ।
दयालु: शालिनीमाह शुक्लाभिव्याहृतं स्मरन् ॥ १ ॥ |
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शब्दार्थ |
मैत्रेय:—परम साधु मैत्रेय ने; उवाच—कहा; निर्वेद-वादिनीम्—वैराग्य से युक्त बातें करने वाली; एवम्—इस प्रकार; मनो:—स्वायंभुव मनु की; दुहितरम्—पुत्री को; मुनि:—कर्दम मुनि ने; दयालु:—दयालु; शालिनीम्—प्रशंसा की पात्र; आह—कहा; शुक्ल—भगवान् विष्णु द्वारा; अभिव्याहृतम्—कथित; स्मरन्—स्मरण करते हुए ।. |
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अनुवाद |
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भगवान् विष्णु के वचनों का स्मरण करते हुए कर्दम मुनि ने वैराग्यपूर्ण बातें करने वाली, स्वायंभुव मनु की प्रशंसनीय पुत्री देवहूति से इस प्रकार कहा। |
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