श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.24.12 
ब्रह्मोवाच
त्वया मेऽपचितिस्तात कल्पिता निर्व्यलीकत: ।
यन्मे सञ्जगृहे वाक्यं भवान्मानद मानयन् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा—ब्रह्माजी ने; उवाच—कहा; त्वया—तुम्हारे द्वारा; मे—मेरा; अपचिति:—पूजा; तात—हे पुत्र; कल्पिता— सम्पन्न; निर्व्यलीकत:—बिना द्वैत के; यत्—चूँकि; मे—मेरा; सञ्जगृहे—पूर्णतया स्वीकार किया है; वाक्यम्— उपदेश; भवान्—आप; मान-द—हे कर्दम (अन्यों का सम्मान करने वाले); मानयन्—आदर करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने कहा : प्रिय पुत्र कर्दम, चूँकि तुमने मेरे उपदेशों का आदर करते हुए उन्हें बिना किसी द्वैत के स्वीकार किया है, अत: तुमने मेरी समुचित तरह से पूजा की है। तुमने मेरे सारे उपदेशों का पालन किया है, ऐसा करके तुमने मेरा सम्मान किया है।
 
तात्पर्य
 ब्रह्माजी इस ब्रह्माण्ड के प्रथम जीवात्मा के रूप में सबों के गुरु माने जाते हैं। वे सभी जीवों के अर्थात् पिता स्रष्टा भी हैं। कर्दम मुनि प्रजापतियों में से एक हैं और वे ब्रह्मा के पुत्र भी हैं। ब्रह्मा कर्दम की इसीलिए प्रशंसा करते हैं, क्योंकि उसने अपने गुरु की आज्ञाओं को किसी प्रकार के कपट के बिना पूर्ण रूप में पालन किया था। भौतिक जगत में बद्धजीव का सबसे बड़ा दुर्गुण है ठगना। उसमें चार दुर्गुण होते हैं—वह त्रुटि करता है, मोहग्रस्त होता है, उसमें अन्यों को ठगने की प्रवृत्ति होती है और उसकी इन्द्रियाँ अपूर्ण होती हैं। किन्तु यदि कोई परम्परा प्रणाली से गुरु की आज्ञा का पालन करता है, तो वह इन दुर्गुणों पर विजय प्राप्त कर लेता है। अत: प्रामाणिक गुरु से प्राप्त ज्ञान ठगी नहीं है। ब्रह्माजी को यह भलीभाँति ज्ञात था कि कर्दम मुनि उनकी आज्ञाओं का अक्षरश: पालन कर रहे थे और इस प्रकार वे अपने गुरु को वास्तविक सम्मान प्रदान कर रहे थे। गुरु के सम्मान का अर्थ ही है उसके आदेशों का अक्षरश: पालन।
 
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