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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.24.16 
वेदाहमाद्यं पुरुषमवतीर्णं स्वमायया ।
भूतानां शेवधिं देहं बिभ्राणं कपिलं मुने ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
वेद—जानता हूँ; अहम्—मैं; आद्यम्—आदि; पुरुषम्—भोक्ता; अवतीर्णम्—अवतरित होकर; स्व-मायया—अपनी अन्तरंगा शक्ति से; भूतानाम्—समस्त जीवात्माओं का; शेवधिम्—सभी इच्छाओं का प्रदाता, जो विशाल कोष के तुल्य है; देहम्—शरीर; बिभ्राणम्—मानते हुए; कपिलम्—कपिल मुनि को; मुने—हे कर्दम मुनि! ।.
 
अनुवाद
 
 हे कर्दम मुनि, मुझे ज्ञात है कि अब आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् अपनी अन्तरंगा शक्ति से अवतार रूप में प्रकट हुए हैं। वे जीवात्माओं के सभी मनोरथों को पूरा करने वाले हैं और उन्होंने अब कपिल मुनि का शरीर धारण किया है।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में पुरुषम् अवतीर्णं स्वमायया शब्द आये हैं। श्रीभगवान् सनातन पुरुष हैं, भोक्ता हैं और जब वे प्रकट होते हैं, तो इस भौतिक शक्ति से कुछ भी ग्रहण नहीं करते। आध्यात्मिक जगत उनकी निजी अन्तरंगा शक्ति का प्रकटीकरण है, जब कि यह भौतिक जगत उनकी भौतिक या भिन्नीकृत शक्ति का प्रकटीकरण है। स्वमायया शब्द सूचित करता है कि जब कभी श्रीभगवान् का अवतार होता है, तो वे अपनी स्वशक्ति के रूप में प्रकट होते हैं। वे मनुष्य का शरीर धारण कर सकते हैं, किन्तु वह शरीर भौतिक नहीं होता। इसीलिए भगवद्गीता में स्पष्ट उल्लेख है कि केवल मूर्ख तथा धूर्त अर्थात् मूढ़ ही श्रीकृष्ण के शरीर को सामान्य मनुष्य का शरीर समझते हैं। शेवधिम् शब्द का अर्थ है कि वह समस्त जीवों की आवश्यकताओं को प्रदान करने वाला है। वेदों में भी उल्लेख है कि भगवान् प्रधान पुरुष हैं और अन्य जीवों की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने वाले हैं। अन्य सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के कारण वे ईश्वर कहलाते हैं। परम पुरुष भी व्यक्ति है, वह निराकार नहीं हैं। जिस प्रकार हम पृथक् पृथक् व्यक्तित्वहैं उसी प्रकार भगवान् भी पृथक् हैं, किन्तु वे परम पुरुष हैं। ईश्वर तथा सामान्य जीवात्माओं में यही अन्तर है।
 
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