श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.24.17 
ज्ञानविज्ञानयोगेन कर्मणामुद्धरन् जटा: ।
हिरण्यकेश: पद्माक्ष: पद्ममुद्रापदाम्बुज: ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
ज्ञान—शास्त्रीय ज्ञान का; विज्ञान—तथा व्यवहार; योगेन—योग के द्वारा; कर्मणाम्—कार्यों का; उद्धरन्—समूल विच्छेद करने के लिए; जटा:—जड़ें; हिरण्य-केश:—सुनहले बाल; पद्म-अक्ष:—कमल से समान नेत्र वाला; पद्म- मुद्रा—कमल चिह्न से युक्त; पद-अम्बुज:—कमल सदृश चरणों वाले ।.
 
अनुवाद
 
 सुनहले बाल, कमल की पंखडिय़ों जैसे नेत्र तथा कमल के पुष्प से अंकित कमल के समान चरणोवाले कपिल मुनि अपने योग तथा शास्त्रीय ज्ञान के व्यवहार से इस भौतिक जगत में कर्म की इच्छा को समूल नष्ट कर देंगे।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में कपिल मुनि के कार्यों तथा शारीरिक लक्षणों का सुन्दर वर्णन हुआ है। यहाँ पर कपिल मुनि के कार्यों की भविष्यवाणी की गई है—वे सांख्य दर्शन को इस प्रकार प्रस्तुत करेंगे कि लोग उनके दर्शन का अध्ययन करके कर्म अर्थात् सकाम कर्म की उत्कट अभिलाषा को जड़ से उखाड़ देंगे। इस भौतिक जगत में प्रत्येक व्यक्ति अपने श्रम के फल को प्राप्त करने में लगा हुआ है। मनुष्य अपने श्रम के फल को प्राप्त करके सुखी रहने का प्रयत्न करता है, किन्तु वस्तुत: वह अधिकाधिक उलझता जाता है। जब तक पूर्ण ज्ञान या भक्तियोग प्राप्त नहीं कर लिया जाता, तब तक इस बन्धन से वह छूट नहीं पाता।

केवल विचारशक्ति (कल्पना) के द्वारा जो लोग बन्धन से छूटने का प्रयत्न करते हैं, वे भी भरसकप्रयास कर रहे होते हैं, किन्तु वैदिक धर्मशास्त्रों से पता चलता है, जिसने कृष्ण भावनामृत में भक्तिप्रिय सेवा अंगीकार ली है, वह कर्म की अभिलाषा को सरलता से उच्छेदित कर देता है। कपिल मुनि द्वारा इस कार्य हेतु सांख्य दर्शन का प्रसार होगा। यहाँ पर उनके शारीरिक लक्षणों का भी वर्णन हुआ हैं। ज्ञान सामान्य शोधकार्य का द्योतक नहीं है। ज्ञान तो शिष्य-परम्परा से गुरु के माध्यम से प्राप्त होने वाले शास्त्रीय ज्ञान का द्योतक है। इस आधुनिक युग में कल्पना एवं आडम्बर द्वारा शोधकार्य करने की प्रवृत्ति चल पड़ी है। किन्तु जो व्यक्ति कल्पना करता है, वह यह भूल जाता है कि वह स्वयं प्रकृति के चार अवगुणों के अधीन है— वह त्रुटि करता है, उसकी इन्द्रियाँ अपूर्ण हैं, उसे मोह हो सकता है और वह ठगता है। जब तक किसी को शिष्य-परम्परा से पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक वह अपने गढ़े हुए कोरे सिद्धान्त प्रस्तुत करता रहता है, अत: वह लोगों को ठग रहा होता है। ज्ञान का अर्थ है शिष्य परम्परा से प्राप्त ज्ञान और विज्ञान का अर्थ है ऐसे ज्ञान का व्यावहारिक सम्प्रयोग। कपिल मुनि का सांख्य दर्शन ज्ञान तथा विज्ञान पर आधारित है।

 
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