अयं सिद्धगणाधीश: साङ्ख्याचार्यै: सुसम्मत: ।
लोके कपिल इत्याख्यां गन्ता ते कीर्तिवर्धन: ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
अयम्—यह भगवान्; सिद्ध-गण—सिद्धमुनियों का; अधीश:—प्रमुख; साङ्ख्य-आचार्यै:—सांख्य दर्शन में दक्ष आचार्यों द्वारा; सु-सम्मत:—वैदिक नियमों के अनुसार मान्य; लोके—संसार में; कपिल: इति—कपिल रूप में; आख्याम्—विख्यात; गन्ता—वह घूमेगा; ते—तुम्हारा; कीर्ति—यश; वर्धन:—बढ़ाते हुए ।.
अनुवाद
तुम्हारा पुत्र समस्त सिद्धगणों का अग्रणी होगा। वह वास्तविक ज्ञान का प्रसार करने में दक्ष आचार्यों द्वारा मान्य होगा और मनुष्यों में वह कपिल नाम से विख्यात होगा। देवहूति के पुत्र-रूप में वह तुम्हारे यश को बढ़ाएगा।
तात्पर्य
सांख्य दर्शन देवहूति के पुत्र कपिल द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक पद्धति है। दूसरे कपिल, जो देवहूति के पुत्र नहीं हैं, नकली हैं। यह ब्रह्मा का कथन है और चूँकि हम ब्रह्मा की शिष्य-परम्परा से सम्बन्धित हैं, अत: हमें उनके कथन को स्वीकार करना चाहिए कि
असली कपिल देवहूति के पुत्र थे और वास्तविक सांख्य दर्शन का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ जिसे आध्यात्मिक प्रर्वग के संचालक आचार्य लोग स्वीकार करेंगे। सुसम्मत शब्द का अर्थ है “उन व्यक्तियों द्वारा स्वीकृत जिनके अभिमत का महत्त्व होता है।”
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥