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श्लोक 3.24.25  |
ततस्त ऋषय: क्षत्त कृतदारा निमन्त्र्य तम् ।
प्रातिष्ठन्नन्दिमापन्ना: स्वं स्वमाश्रममण्डलम् ॥ २५ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तब; ते—वे; ऋषय:—ऋषिगण; क्षत्त:—हे विदुर; कृत-दारा:—इस प्रकार विवाहित; निमन्त्र्य—विदा लेकर; तम्—कर्दम से; प्रातिष्ठन्—चले गये; नन्दिम्—प्रसन्नता को; आपन्ना:—प्राप्त; स्वम् स्वम्—अपने अपने; आश्रम- मण्डलम्—आश्रम ।. |
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अनुवाद |
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हे विदुर, इस प्रकार विवाहित होकर ऋषियों ने कर्दम से विदा ली और वे प्रसन्नतापूर्वक अपने अपने आश्रम को चले गये। |
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