श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.24.26 
स चावतीर्णं त्रियुगमाज्ञाय विबुधर्षभम् ।
विविक्त उपसङ्गम्य प्रणम्य समभाषत ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—कर्दम मुनि ने; च—तथा; अवतीर्णम्—अवतार लिया; त्रि-युगम्—विष्णु को; आज्ञाय—समझ कर; विबुध- ऋषभम्—देवताओं का मुखिया; विविक्ते—एकान्त स्थान में; उपसङ्गम्य—पास जाकर; प्रणम्य—प्रणाम करके; समभाषत—बोला ।.
 
अनुवाद
 
 जब कर्दम मुनि ने समझ लिया कि सब देवताओं के प्रधान पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् विष्णु ने अवतार लिया है, तो वे एकान्त स्थान में जाकर उन्हें नमस्कार करते हुए इस प्रकार बोले।
 
तात्पर्य
 भगवान् विष्णु को त्रि-युग कहते हैं। वे तीन युगों—सत्य, त्रेता तथा द्वापर में प्रकट होते हैं, किन्तु कलियुग में नहीं प्रकट होते, लेकिन प्रह्लाद महाराज की स्तुतियों से समझ में आता है कि वे भक्त के वेश में कलियुग में प्रकट होते हैं। भगवान् चैतन्य ही वे भक्त हैं। किन्तु उन्होंने कभी इस भेद को प्रकट नहीं किया कि कृष्ण भक्त के रूप में प्रकट हुए हैं, फिर भी रूप गोस्वामी ने उन्हें पहचान लिया, क्योंकि भगवान् अपने को शुद्ध भक्त से छिपा नहीं पाते। जब रूप गोस्वामी ने पहली बार भगवान् चैतन्य को नमस्कार किया तभी उनको पहचान गये थे। वे जान गये कि भगवान् चैतन्य स्वयं श्रीकृष्ण थे, अत: उन्होंने इन शब्दों में उनको प्रणाम किया, “मैं श्रीकृष्ण की प्रार्थना करता हूँ जो अब भगवान् चैतन्य के रूप में प्रकट हुए हैं।” प्रह्लाद महाराज की स्तुतियों से भी इसकी पुष्टि होती है, वे कलियुग में प्रत्यक्ष रूप में नहीं वरन् भक्त के रूप में प्रकट होते हैं। इसीलिए विष्णु त्रियुग कहलाते हैं। त्रियुग की एक अन्य व्याख्या है, जिसके अनुसार भगवान् में तीन युग्म दैवी गुण पाये जाते हैं जिनके नाम हैं शक्ति तथा समृद्धि, दया तथा यश और बुद्धि तथा शान्ति। श्रीधर स्वामी के अनुसार भगवान् के ऐश्वर्य के तीन जोड़े इस प्रकार हैं—समस्त धन तथा समस्त शक्ति, सम्पूर्ण यश तथा समग्र सौन्दर्य तथा समग्र बुद्धि और समग्र त्याग। त्रियुग की विभिन्न व्याख्याएँ हैं, किन्तु समस्त विद्वानों ने इसका अर्थ विष्णु माना है। जब कर्दम मुनि जान गये कि उनका पुत्र कपिल साक्षात् विष्णु है, तो उन्होंने उसको प्रणाम करना चाहा। अत: जब कपिल अकेले थे तो उन्होंने इस प्रकार से प्रणाम किया और अपने मन की बातें कहीं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥