श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  3.24.36 
एतन्मे जन्म लोकेऽस्मिन्मुमुक्षूणां दुराशयात् ।
प्रसंख्यानाय तत्त्वानां सम्मतायात्मदर्शने ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
एतत्—यह; मे—मेरा; जन्म—जन्म; लोके—संसार में; अस्मिन्—इस; मुमुक्षूणाम्—मुक्ति के इच्छुक परम साधुओं द्वारा; दुराशयात्—अनावश्यक भौतिक इच्छाओं से; प्रसङ्ख्यानाय—विवेचन करने के लिए; तत्त्वानाम्—सत्यों का; सम्मताय—अत्यन्त समादृत; आत्म-दर्शने—आत्म-साक्षात्कार में ।.
 
अनुवाद
 
 इस संसार में मेरा प्राकट्य विशेष रूप से सांख्य दर्शन का प्रतिपादन करने के लिए हुआ है। यह दर्शन उन व्यक्तियों के द्वारा आत्म-साक्षात्कार हेतु परम समादृत है, जो अनावश्यक भौतिक कामनाओं के बन्धन से मुक्ति चाहते हैं।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर दुराशयात् शब्द अत्यन्त सार्थक है। दुर का अर्थ विपत्ति या दुख है। आशयात् का अर्थ है “आश्रय से।” हम बद्धजीवों ने भौतिक देह का आश्रय ले रखा है, जो कष्टों तथा दुखों से परिपूर्ण है। मूर्ख लोग इस स्थिति को नहीं समझ पाते और यही अज्ञान, मोह या माया की छड़ी कहलाता है। मानव समाज को गम्भीरतापूर्वक समझ लेना चाहिए कि शरीर स्वयं समस्त दुखी जीवन का मूल है। कहा जाता है कि आधुनिक सभ्यता वैज्ञानिक ज्ञान में प्रगति कर रही है, किन्तु यह वैज्ञानिक ज्ञान है क्या? यह मात्र शारीरिक सुख (सुविधा) पर निर्भर है, इसमें इसका ज्ञान नहीं रहता कि कोई कितने ही सुख से शरीर को क्यों न रखे वह नाशवान है। भगवद्गीता में कहा गया है—अन्तवन्त इमे देहा:—इन शरीरों का नाश होना निश्चित है। नित्यस्योक्ता: शरीरिण: से शरीर के भीतर जीवित आत्मा या चिनगारी का बोध होता है। वह आत्मा तो अमर है, किन्तु शरीर अमर नहीं है। कार्य करने के लिए हमें शरीर चाहिए; बिना शरीर, बिना इन्द्रियों के कोई क्रियाशीलता नहीं आती। किन्तु लोगों में यह जानने की इच्छा नहीं होती कि क्या शरीर अमर हो सकता है। वास्तव में वे अमर शरीर इसीलिए चाहते हैं जिससे इन्द्रिय-सुख भोग सकें, किन्तु यह भोग अमर नहीं है। अत: ऐसी वस्तु का अभाव उन्हें खलता है, जिसको वे निरन्तर भोग सकें, किन्तु वे यह नहीं जानते कि इसे किस प्रकार प्राप्त किया जाय। अत: यहाँ पर कपिल देव द्वारा वर्णित सांख्य दर्शन तत्त्वानाम् है। सांख्य दर्शन वास्तविक सत्य का ज्ञान प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है। तो वह वास्तविक सत्य क्या है? वास्तविक सत्य वह ज्ञान है, जिससे समस्त दुखों के मूल, इस भौतिक शरीर, से छुटकारा पाया जा सके। इस कार्य के लिए ही भगवान् कपिल का अवतार हुआ। इसका यहाँ स्पष्ट उल्लेख हुआ है।
 
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