आत्म-साक्षात्कार का यह मार्ग, जिसको समझ पाना दुष्कर है, अब कालक्रम से लुप्त हो गया है। इस दर्शन को पुन: मानव समाज में प्रवर्तित करने और व्याख्या करने के लिए ही मैंने कपिल का यह शरीर धारण किया है—ऐसा जानो।
तात्पर्य
यह सत्य नहीं है कि सांख्य दर्शन, दर्शन की एक नवीन पद्धति है, जिसका सूत्रपात कपिल ने किया, जिस प्रकार कि भौतिकवादी दार्शनिक अन्य दार्शनिकों से आगे बढऩे के लिए नए-नए विचार प्रस्तुत करते रहते हैं। भौतिक स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से ज्ञानी अन्यों की अपेक्षा अधिक विख्यात बनना चाहते हैं। ज्ञानियों की गतिविधियों का क्षेत्र मस्तिष्क (मन) है, मन को विचलित करने के अनन्त उपाय हैं और इस प्रकार असंख्य सिद्धान्त बन सकते हैं। किन्तु सांख्य दर्शन ऐसा नहीं है, यह मात्र ज्ञान (मानसिक कल्पना) नहीं है। यह तथ्यपरक है, किन्तु कपिल के समय में यह लुप्त हो चुका था।
समय के साथ विशिष्ट प्रकार का कोई भी ज्ञान लुप्त हो सकता है या प्रच्छन्न रहा आता है; यह इस भौतिक संसार का स्वभाव है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने भी ऐसा ही कहा है—स कालेनेह महता योगो नष्ट:—काल-क्रम में भगवद्गीता में वर्णित योग पद्धति लुप्त हो गई। यह शिष्य-परम्परा से चली आ रही थी, किन्तु काल-क्रम में यह खो गई। काल इतना प्रबल है कि काल से साथ प्रत्येक वस्तु नष्ट अथवा लुप्त हो जाती है। भगवद्गीता की योग पद्धति श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के मिलाप के पूर्व लुप्त हो चली थी। इसीलिए श्रीकृष्ण ने उसी प्राचीन योग पद्धति को अर्जुन के समक्ष प्रतिपादित किया जो वास्तव में भगवद्गीता को समझ सकता था। इसी प्रकार कपिल ने भी कहा कि वे सांख्य दर्शन पद्धति का नये सिरे से प्रवर्तन नहीं करने जा रहे, यह तो पहले से प्रचलित थी और काल-क्रम में विलुप्त हो गई, अत: वे उसको पुन: चालू करने के लिए उत्पन्न हुए हैं। भगवान् के अवतार लेने का यह प्रयोजन है। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। धर्म का अर्थ है जीवात्मा का वास्तविक कार्य। जब जीवात्मा के सनातन कार्य में गड़बड़ी आती है, तो भगवान् अवतरित होते हैं और जीवन के वास्तविक कार्य का पुन: संचालन करते हैं। ऐसी तथाकथित धार्मिक पद्धति जो भक्ति के पथ पर नहीं चलती वह अधर्म संस्थापन कहलाती है। जब लोग भगवान् के साथ अपने सनातन सम्बन्ध को भूल कर अन्य कार्य में लग जाते हैं, तो उनका यह व्यापार अधर्म कहलाता है। सांख्य दर्शन में बताया गया है कि मनुष्य भौतिक जीवन की दुखी अवस्था से किस प्रकार उबर सकता है। भगवान् स्वयं इस उत्तम पद्धति की व्याख्या कर रहे हैं।
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