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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.24.38 
गच्छ कामं मयापृष्टो मयि संन्यस्तकर्मणा ।
जित्वा सुदुर्जयं मृत्युममृतत्वाय मां भज ॥ ३८ ॥
 
शब्दार्थ
गच्छ—जाओ; कामम्—जैसी तुम्हारी इच्छा है; मया—मेरे द्वारा; आपृष्ट:—आदिष्ट; मयि—मुझमें; सन्न्यस्त—पूरी तरह शरणागत; कर्मणा—अपने कार्य से; जित्वा—जीतकर; सुदुर्जयम्—अजेय; मृत्युम्—मृत्यु को; अमृतत्वाय— अमर जीवन के लिए; माम्—मुझको; भज—भजो, मेरी भक्ति में तत्पर हो ।.
 
अनुवाद
 
 अब मेरे द्वारा आदिष्ट तुम मुझे अपने समस्त कार्यों को अर्पित करके जहाँ भी चाहो जाओ। दुर्जेय मृत्यु को जीतते हुए शाश्वत जीवन के लिए मेरी पूजा करो।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर सांख्य दर्शन का उद्देश्य बताया गया है। यदि कोई वास्तविक शाश्वत जीवन चाहता है, तो उसे भक्तियोग या श्रीकृष्णभावना में अपने आपको लगाना चाहिए। जन्म तथा मृत्यु से मुक्त होना कोई सरल कार्य नहीं। भौतिक शरीर के लिए जन्म तथा मृत्यु स्वाभाविक हैं। सुदुर्जय का अर्थ है, “जीत पाना अत्यन्त कठिन।” आधुनिक तथाकथित वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है कि वे जन्म तथा मृत्यु पर विजय पाने की प्रक्रिया को समझ सकें। अत: वे जन्म तथा मृत्यु के प्रश्न को ताक पर रख देते हैं, वे उस पर विचार ही नहीं करते। वे केवल नाशवान भौतिक शरीर से सम्बन्धित समस्याओं में लगे रहते हैं।

वस्तुत: मानवजीवन जन्म तथा मृत्यु के दुर्जय प्रक्रम पर विजय प्राप्त करना है। इसे यहाँ पर वर्णित विधि से किया जा सकता है। माम् भज—मनुष्य को भगवान् की भक्ति में लगना चाहिए। भगवद्गीता में भी भगवान् कहते हैं—मन्मना भव भद्भक्त:—“बस, मेरे भक्त बन जाओ और मेरी पूजा करो।” किन्तु मूढ़ तथाकथित विद्वान कहते हैं कि हमें जिसकी पूजा करनी है और जिसकी शरण में जाना है, वह कृष्ण न होकर कोई अन्य है। अत: श्रीकृष्ण की कृपा के बिना न तो कोई सांख्य दर्शन, न ही मुक्ति के प्रयोजन वाला अन्य दर्शन समझ सकता है। वैदिक ज्ञान इसकी पुष्टि करता है कि अविद्या के कारण मनुष्य इस भौतिक जीवन में उलझ जाता है और भौतिक झंझटों से तभी छुटकारा पाया जा सकता है जब उसे वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो ले। सांख्य का अर्थ है तथ्यपरक ज्ञान जिससे मनुष्य भौतिक बंधन से छूट सके।

 
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