श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.24.8 
पेतु: सुमनसो दिव्या: खेचरैरपवर्जिता: ।
प्रसेदुश्च दिश: सर्वा अम्भांसि च मनांसि च ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
पेतु:—गिरे, बरसे; सुमनस:—फूल; दिव्या:—सुन्दर; खे-चरै:—आकाशचारी देवताओं द्वारा; अपवर्जिता:—गिराये गये; प्रसेदु:—संतुष्ट हुआ; च—तथा; दिश:—दिशाएँ; सर्वा:—सभी; अम्भांसि—जल; च—तथा; मनांसि—मन; च—यथा ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् के प्राकट्य के समय आकाश में मुक्त रुप से विचरण करनेवाले देवताओं ने फूल बरसाये। सभी दिशाएँ, सभी सागर तथा सबों के मन परम प्रसन्न हुए।
 
तात्पर्य
 यहाँ यह ज्ञात होता है कि आकाश में ऐसी जीवात्माएँ हैं, जो बिना रोक-टोक के वायु में विचरण कर सकती हैं। यद्यपि हम लोग अन्तरिक्ष में यात्रा कर सकते हैं, पर अनेक प्रकार के व्यवधान आते हैं, किन्तु देवताओं के लिए ये व्यवधान नहीं हैं। श्रीमद्भागवत से हमें पता चलता है कि सिद्धलोक के वासी एक लोक से दूसरे की यात्रा बिना किसी व्यवधान के कर सकते हैं। जब कर्दम मुनि के पुत्र श्रीकपिल जी का जन्म हुआ तो उन्होंने पृथ्वी पर पुष्प - वर्षा की।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥