भगवान् का यह वचन सुनकर देवहूति ने पूछा : मैं किस प्रकार के भक्तियोग का विकास और अभ्यास करूँ जिससे मुझे आपके चरणकमलों की सेवा तत्काल एवं सरलता से प्राप्त हो सके?
तात्पर्य
भगवद्गीता में कहा गया है कि किसी को भी भगवान् की सेवा करने से रोका नहीं जा सकता। भले ही वह स्त्री हो या श्रमिक या वणिक, यदि वह भगवान् की भक्ति में अपने आपको लगाये रखता है, तो उसे परम गति की प्राप्ति होती है और वह भगवान् के धाम को वापस जाता है। विभिन्न प्रकार के भक्तों के लिए सर्वोपयुक्त भक्ति का निश्चय गुरु की कृपा से निष्पन्न होता है।
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