मेरे पुत्र कपिल, आखिर मैं एक स्त्री हूँ। परम सत्य को समझ पाना मेरे लिए अत्यन्त कठिन है, क्योंकि मेरी बुद्धि इतनी कुशाग्र नहीं है। यद्यपि मैं इतनी बुद्धिमान नही हँू। किन्तु तो भी, यदि आप मुझे कृपा करके समझाएँगे तो मैं उसे समझ कर दिव्य सुख का अनुभव कर सकूँगी।
तात्पर्य
तत्त्वज्ञान सामान्य अल्पबुद्धि वाले मनुष्यों की समझ में जल्दी नहीं चढ़ता, किन्तु यदि गुरु अपने शिष्य पर कृपालु हो तो फिर शिष्य चाहे कितना ही मूर्ख क्यों न हो, गुरु की दैवी कृपा से सब कुछ प्रकट हो जाता है। अत: विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कहते हैं—यस्य प्रसादाद् अर्थात् गुरु की कृपा से भगवत्प्रसाद: अर्थात् भगवान् की कृपा प्रकट होती है। देवहूति ने अपने महान् पुत्र से उसके प्रति कृपालु होने के लिए प्रार्थना की, क्योंकि वह अल्पबुद्धि स्त्री थी और साथ ही उसकी माता थी। कपिलदेव की कृपा से परम सत्य को समझना उसके लिए सर्वथा सम्भव हो पाया, यद्यपि वह विषय सामान्य व्यक्तियों के लिए, विशेष रूप से स्त्रियों के लिए, अत्यन्त जटिल है।
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