तम्—उसको (कपिल को); आसीनम्—स्थित; अकर्माणम्—फुरसत से; तत्त्व—परम सत्य का; मार्ग-अग्र—चरम लक्ष्य; दर्शनम्—जो दिखा सके; स्व-सुतम्—अपने पुत्र को; देवहूति:—देवहूति ने; आह—कहा; धातु:—ब्रह्मा का; संस्मरती—स्मरण करते हुए; वच:—वचन, शब्द ।.
अनुवाद
अपनी माँ देवहूति को परम सत्य का चरम लक्ष्य दिखला सकने में समर्थ कपिल जब उसके समक्ष फुरसत से बैठे थे तो देवहूति को वे शब्द याद आये जो ब्रह्मा ने उससे कहे थे, अत: वह कपिल से इस प्रकार प्रश्न पूछने लगी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥