श्रीभगवानुवाच
अथ ते सम्प्रवक्ष्यामि तत्त्वानां लक्षणं पृथक् ।
यद्विदित्वा विमुच्येत पुरुष: प्राकृतैर्गुणै: ॥ १ ॥
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; अथ—अब; ते—तुमसे; सम्प्रवक्ष्यामि—कहूँगा; तत्त्वानाम्—परम सत्य की कोटियों के; लक्षणम्—लक्षण; पृथक्—अलग-अलग; यत्—जिसे; विदित्वा—जानकर; विमुच्येत—मुक्त हो सकता है; पुरुष:—कोई व्यक्ति; प्राकृतै:—प्रकृति के; गुणै:—गुणों से ।.
अनुवाद
भगवान् कपिल ने आगे कहा : हे माता, अब मैं तुमसे परम सत्य की विभिन्न कोटियों का वर्णन करूँगा जिनके जान लेने से कोई भी पुरुष प्रकृति के गुणों के प्रभाव से मुक्त हो सकता है।
तात्पर्य
जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है, केवल भक्ति के द्वारा भगवान् को समझा जा सकता है (भक्त्या मामभिजानाति)। भागवत में भक्ति का विषय माम् अथवा कृष्ण को बताया गया है। श्रीचैतन्य-चरितामृत में व्याख्या की गई है कि कृष्ण को समझने का अर्थ है कृष्ण को उनकी अंतरंगा शक्ति, उनकी बहिरंगा शक्ति, उनके विस्तारों तथा अवतारों समेत समझना। कृष्ण को समझने के लिए ज्ञान के अनेक विभाग हैं। सांख्य दर्शन विशेषत: उन लोगों के लिए है, जो इस जगत में बद्ध हैं। इसे परम्परा प्रणाली या शिष्य-परम्परा द्वारा भक्ति के विज्ञान के रूप में समझा जाता है। भक्ति के प्रारम्भिक अध्ययनों की व्याख्या पहले की जा चुकी है। भगवान् अब भक्ति का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। उनका कहना है कि ऐसे अध्ययन से मनुष्य प्रकृति के गुणों से मुक्त हो जाता है। भगवद्गीता में भी इसी की पुष्टि हुई है। ततो मां तत्त्वातो ज्ञात्वा भगवान् को ज्ञान की विभिन्न कोटियों द्वारा जानकर मनुष्य भगवद्धाम जाने का अधिकारी बन जाता है। इसकी भी यहाँ पर व्याख्या की गई है। सांख्य दर्शन में भक्ति के विज्ञान (भक्ति तत्त्व) को जान लेने से मनुष्य प्रकृति के गुणों से मुक्त हो जाता है। प्रकृति के जादू से मुक्त होकर शाश्वत आत्मा भगवद्धाम में प्रविष्ट करने का अधिकारी बन जाता है। जब तक मनुष्य में रंचमात्र भी इच्छा रहती है या प्रकृति पर अधिकार जताने की भावना रहती है तब तक वह प्रकृति के गुणों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता। अत: मनुष्य को विश्लेषण द्वारा पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् को समझना होगा जैसाकि भगवान् कपिल ने सांख्य दर्शन में समझाया है।
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